शब्द उमड़ रहे हैं, घुमड़ रहे हैं

अमिताभ दीक्षित, एडिटर-ICN U.P.

शब्द उमड़ रहे हैं, घुमड़ रहे हैं

मेरे और तुम्हारे भीतर

वाक्य बनने को लालायित, आतुर

ध्वनियों की सीमा नहीं

चाहिए उन्हें भी आकार

प्रखर बनने से पूर्व ज्वाला का एक आहार

जीवन से प्रेरित आहट टूटी सी

सहमी सहमी

सन्देह करेगी सदियों पर

अनचाहा गर्भस्थ शिशु जैसे

अचानक चिहुँक उठेगा हौले से

बोलेगा ‘ माँ ’

एकान्त में एक दिवस

विश्व के कोलाहल से दूर

अंचल के पास माँ उसे चुमकारे जैसे

एक ही अतीत नहीं

कई से इतिहास

व्याकुल हैं शब्दों की

उमड़न से घुमड़न से

चेतनता अस्तित्व के प्रवर्तन से घुली मिली

शब्दों के गर्भस्थ शैशव का

मातृत्व निभायेगी

लिपियाँ सिखाकर वाक्य बनायेगी

सूर्य की किरणों में

एक किरण और बढ़ जाएगी

मानवता की भाषा में विश्वस्तता बढ़ाएगी

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